20 साल से पसहर चावल दान कर रही दादी, एक एकड़ में नहीं लेती कोई फसल
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बाजार में 80 रुपये किलो की दर से मिलने वाले पसहर चावल को 65 साल की दादी व्रती महिलाओं को घूम-घूमकर दान करती है। ताकि हलषष्ठी पर अपनी संतान की दीर्घायु के लिए व्रत करने वाली माताओं को यह आसानी से मिल सके और उनका व्रत सफल हो। इतना ही नहीं, उन्होंने वह अपने एक एकड़ खेत में कोई फसल नहीं लेती जिससे उसमें पसहर धान तैयार हो सके। वह बीते 20 साल से इस सेवा कार्य में जुटी हुई है।
संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं भादो कृष्ण पक्ष की षष्ठी को व्रत रखती हैं। इसमें पसहर चावल का विशेष महत्व है और ये आसानी से मिलता भी नहीं है। वहीं चिचिरदा निवासी दादी सोनमत साहू की दानशीलता से आसपास के गांवों की व्रती महिलाओं को यह दिक्कत नहीं होती। वह हर साल समय से पहले ही उन तक पसहर चावल पहुंचा देती है।
सोनमत के पास गांव में एक-एक एकड़ के दो खेत हैं। उनमें से एक में वह धान की फसल लेती है और दूसरे खेत को पसहर के लिए छोड़ देती है। जबकि उसे सबसे ज्यादा मेहनत पसहर के लिए करनी पड़ती है।उसकी देखभाल के लिए कड़ा पहरा देना होता है। लेकिन, वह तमाम कठिनाइयों के बाद भी अपने काम में जुटी रहती है।
जब पसहर तैयार हो जाता है तो उसके धान को घर लाकर चावल बनाने की प्रक्रिया स्वयं ही करती है। इसके बाद सफर शुरू होता है माताओं के व्रत को सफल बनाने के लिए पसहर बांटने का। उनका कहना है कि पसहर काफी मुश्किल से मिलता है। पहले काफी दूर तक पसहर के लिए जाना पड़ता था और ऐसे में कभी मिल पाता और कभी नहीं मिलाता था। पसहर के बिना हलषष्ठी का व्रत भी सफल नहीं होता है। इसे देखते हुए स्वयं ही पसहर के लिए अपने खेत को छोड़ने का फैसला लिया।
क्या है पसहर
पसहर चावल अपने आप उपजता है। इसमें हल का प्रयोग नहीं किया जाता। इसका वैज्ञानिक नाम राइजा निवारा है, जो एक प्रकार से जंगली चावल का प्रकार है। इसके बीज पकने से पहले ही गिर जाते हैं।
हलषष्ठी का माताओं के लिए महत्व
हलषष्ठी का माताओं के लिए विशेष महत्व है। इस दिन माताएं बिना हल लगे अन्न व सब्जियों का उपयोग करती हैं। संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत पूजन करती हैं। व्रत का परायण बिना हल लगे इसी पसहर चावल और अन्य सब्जियों से करती हैं।
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