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कोविड-19 की वैक्सीन ने चिकित्सा जगत से लेकर वैज्ञानिकों के बीच में हलचल मचा रखी है। आईसीएमआर के एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य, आईआईटी दिल्ली के वैज्ञानिक प्रोफेसर वी रामगोपाल राव का भी मानना है कि इतनी जल्दी भारत में वैक्सीन निर्माण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वैक्सीन को लेकर एक आश्चर्य आईसीएमआर से हाल में रिटायर हुए डा. रमन गंगाखेड़कर को भी है। वह कहते हैं कि आठ महीने का संक्रमण और 27 वैक्सीन होड़ में हैं। ऐसा जीवन में कभी नहीं सुना। लेकिन फिर भी डा. रमन गंगाखेड़कर कहते हैं कि मार्च 2021 तक भारत में भी कोविड-19 की एक वैक्सीन आने की पूरी उम्मीद है।
डा. रमन गंगाखेड़कर कहते हैं कि ऐसा न हुआ तो मान लीजिएगा कि विज्ञान फेल हो गया। डा. रमनगंगा खेड़कर ने रूस और चीन द्वारा विकसित की गई वैक्सीन पर भी सवाल खड़ा किया? उन्होंने कहा कि इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं है। भारत को सोचना होगा कि रूस और चीन की वैक्सीन के साथ जाना चाहिए या नहीं? वहीं क्रिश्चियन मेडिकल कालेज, वेल्लोर के प्रो. गगनदीप कंग कहते हैं कि सात महीने में 30 वैक्सीन का ट्रायल, यह विज्ञान है या मजाक? उन्होंने कहा कि दुनिया में कोविड-19 की 165 पर वैक्सीन पर काम चल रहा है।
प्रभाव जाने बगैर दवा या वैक्सीन का लांच होना गलत
आईआईटी एलुमनाई काउंसिल के चेयरमैन रवि शर्मा का कहना है कि कोविड-19 जैसे वायरस की इतनी जल्दी वैक्सीन संभव ही नहीं है। यह लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ के सिवा कुछ भी नहीं है। रवि शर्मा का कहना है कि वायरस की वैक्सीन निर्माण के लिए एक वैज्ञानिक डाटा की आवश्यकता होती है। प्रयोगशाला में अच्छा खासा समय लगता है।
वायरस की संरचना, जीनोम, खतरनाक प्रोटीन की पहचान, उसके उत्परिवर्तन (म्यूटेशन, बदलाव) को जाने बिना वैक्सीन कैसे लाई जा सकती है। क्वलीनिकल ट्रायल में लंबा समय लगता है। फिर लोगों पर वैक्सीन के दुष्प्रभाव का अध्ययन किए बगैर इसे जारी करना सामान्य आदमी के जीवन के साथ बड़ा खिलवाड़ होगा।
रवि शर्मा का कहना है कि इन्हीं जटिलताओं को देखते हुए आईआईटी एलुमनाई काउंसिल ने वैक्सीन निर्माण से अपने हाथ पीछे खींचे हैं। क्योंकि एलुमनाई काउंसिल वैक्सीन (अरबों डालर का बाजार) के बाजारीकरण की होड़ में नहीं शामिल होना चाहती।
पहले लगते थे दस साल, अब दो साल तो चाहिए- डा. गंगाखेड़कर
डा. रमन गंगाखेड़कर का कहना है कि पहले एक वैक्सीन के विकास में कम से कम 10 साल लगते थे। सैंपल का कलेक्शन, वायरस का अध्ययन, उसके जीनोम, खतरनाक प्रोट्रीन की तलाश यह सब बहुत आसान काम नहीं था। तीन-चार साल तो इसी में लग जाते थे। अब विज्ञान के साथ-साथ बहुत कुछ बदला है।
कई चीजें साथ-साथ चलती रहती हैं। अब वैज्ञानिकों ने अनुसंधान करके वैक्सीन के प्लेटफार्म जैसी अवधारणा पर काम शुरू कर दिया है। कोविड-19 वायरस को लेकर चीन ने पहले उसके जीनोम, प्रोटीन आदि की जानकारी दे दी है। कोविड-19 में पांच प्रोटीन होने की जानकारी मिली है।
वैक्सीन के विकास में लगे वैज्ञानिकों ने प्रीफैब्रिक मैटेरियल को तैयार कर लिया। एडिनो वायरस (सर्दी-जुकाम वाला वायरस) पर काम करके समय को बचाया है। इस तरह से वैज्ञानिकों को पहले की तुलना में काफी सुविधा हुई है।
जानवरों पर ट्रायल, मनुष्यों पर परीक्षण
डा. रमन गंगाखेड़कर का कहना है कि वैक्सीन का पहला ट्रायल तो जानवर पर ही होना है। इसके लिए उपयुक्त जानवर की तलाश, उसमें एंटीबॉडी का बनना, दुष्प्रभाव का अध्ययन सब प्रक्रिया का हिस्सा है। यहां भी सैंपल का साइज जितना बड़ा होगा, उतना ही अच्छा है।
जानवरों के बाद मनुष्यों पर वैक्सीन के ट्रायल की बारी आती है। डा. गंगाखेड़कर कहते हैं कि चाहे जितनी जल्दबाजी कर लीजिए, लेकिन इसके परीक्षण के लिए 6-8 महीने तो जरूरी हैं। आम तौर पर शरीर में एंडी बॉडी बनने में ही एक महीना लग जाता है। प्रभाव या असर का पता लगाने में समय लगता है।
डा. रमन गंगाखेड़कर ने कहा कि वैक्सीन तैयार करने में पूरी दुनिया लगी है। तमाम वैज्ञानिक लगे हैं। सब समय को घटा देना चाहते हैं, लेकिन फिर भी 18 माह से दो साल का समय चाहिए। उन्होंने उम्मीद जताई कि मार्च 2021 तक भारत की प्रयोगशाला में भी एक वैक्सीन तैयार करने में सफलता मिल जानी चाहिए।
100 फीसदी सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकते
आईआईटी एलुमनाई काउंसिल के रवि शर्मा का कहना है कि जो लोग कोविड-19 वैक्सीन के 18-24 महीने तक आ जाने का दावा कर रहे हैं, उनसे वैक्सीन का प्रभाव के बारे में पूछना चाहिए। रवि शर्मा का कहना है कि इतने कम समय में जो भी दवा या वैक्सीन लोगों को दी जाएगी, वह कितनी सुरक्षित है, नहीं कहा जा सकता। इसके काफी बड़े दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
डा. रमन गंगाखेड़कर ने भी इसे स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि वैक्सीन कितनी सुरक्षित रहेगी, नहीं बताया जा सकता। 100 फीसदी सुरक्षा की भी गारंटी नहीं दी जा सकती। पुरानी वैक्सीन के कई दुष्प्रभाव तो अब पता चल रहे हैं, लेकिन फिर भी थोड़ा जोखिम (रिस्क) तो लेना पड़ेगा।
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