देशभर में पांच नवंबर को चक्का जाम, 26-27 को दिल्ली में डेरा डालेंगे किसान
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नए कृषि कानूनों को पूरी तरह वापस कराने के लिए किसानों ने बड़े आंदोलन की रणनीति बनाई है। इसके अंतर्गत पांच नवंबर को पूरे देश में 12 बजे से शाम चार बजे तक चक्का जाम किया जाएगा। 26-27 नवंबर को पूरे देश से किसान दिल्ली आएंगे और संसद का घेराव करेंगे। इस मुद्दे पर देश के बाकी किसान संगठनों को साथ लाने के लिए पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है।
देशभर के किसान संगठनों की मंगलवार को दिल्ली में हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया है कि तीनों कानूनों को वापस कराने के लिए सरकार से वार्ता की प्रक्रिया भी जारी रखी जाएगी, जिससे इस मुद्दे का शांतिपूर्ण हल निकाला जा सके। लेकिन मुद्दे पर कोई हल न निकलने की स्थिति में सरकार का विरोध जारी रखा जाएगा। बैठक में 150 से ज्यादा किसान संगठनों के भाग लेने का दावा किया गया है।
किसानों की बैठक में स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, मध्यप्रदेश के किसान नेता सुनीलम, पंजाब के प्रमुख किसान नेता दर्शन सिंह शामिल थे। बैठक में कुछ किसान संगठनों के भाग न लेने का मुद्दा भी छाया रहा। विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक बड़े किसान संगठन के किसी प्रतिनिधि के बैठक में शामिल न होने को लेकर भी सवाल खड़े हुए, लेकिन किसान नेताओं ने कहा कि वे सबसे बात कर सबको साथ लाने की कोशिश करेंगे।
क्या कुछ कम पर सहमत हैं किसान
किसान संगठन सरकार से पूरे कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। क्या सरकार इसके लिए तैयार होगी? या किसान संगठन न्यूनतम समर्थन मूल्य और एपीएमसी मंडियों को खत्म न करने की बात पर सहमत हो जाएंगेे? इस पर मध्यप्रदेश के किसान नेता सुनीलम ने कहा कि तीनों कानून एक दूसरे से संबद्ध हैं। ऐसे में अगर किसी एक को भी रहने दिया जाएगा तो इससे वही असर पड़ेगा जिसके तीनों कानूनों के रहने से असर पड़ने की संभावना है। ऐसे में सभी कानूनों को पूरी तरह वापस लेने से कम पर सहमति बनाने का कोई अर्थ नहीं है।
किसान नेता सुनीलम ने कहा कि एपीएमसी मंडियों में अनाज बेचने पर टैक्स देना पड़ता है। खुले बाजार में अनाज बेचने पर टैक्स नहीं देना पड़ेगा जिससे ज्यादा लाभ के लिए व्यापारी खुले बाजार में ही खरीद को प्रमुखता देंगे। इससे धीरे-धीरे एपीएमसी व्यवस्था कमजोर होगी और बाद में काम के अभाव का बहाना दिखाकर इसे खत्म कर दिया जाएगा। यही कारण है कि केवल एपीएमसी मंडियों को बनाए रखने का आश्वासन देना काफी नहीं है, जरूरी है कि दोनों प्रकार की व्यवस्था में एकसमानता लाई जाए जिससे एपीएमसी के खत्म होने की संभावना ही खत्म हो जाए।
छत्तीसगढ़ के किसान नेता तेजराम विद्रोही ने कहा कि उनके यहां राज्य सरकार ने धान की फसल पर केंद्र से आगे बढ़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की शुरुआत की थी। छत्तीसगढ़ के किसानों को धान की कीमत 2500 रुपये प्रति क्विंटल मिलने लगी थी। लेकिन केंद्र ने सीमा से ज्यादा धान की खरीद करने से इंकार कर दिया। इससे राज्य सरकार मजबूरन ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दे पा रही है।
एमएसपी भी नहीं मिल रहा
हरियाणा के किसान नेता सुमित दलाल ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को बड़ा मुद्दा बनाकर दिखाया जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि किसानों को अभी भी एमएसपी का लाभ नहीं मिल पा रहा है। मंडियों में पहुंचने पर खरीदार धान में नमी होने की बात कहकर उन्हें एमएसपी देने से इंकार कर देते हैं। ज्यादातर खरीद केंद्र अभी भी काम नहीं कर रहे हैं, लेकिन किसानों को अगली फसल की बुवाई के लिए पैसे की जरूरत है। लोगों को मजबूरी में धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य से 200 रुपये प्रति क्विंटल कम पर फसल बेचनी पड़ रही है।
पंजाब और हरियाणा में तो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ मिल भी जाता है, लेकिन देश के अन्य राज्यों में उन्हें यह लाभ भी नहीं मिल पाता। फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के आंकड़े बताते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ भी देश के 14 करोड़ किसानों में से एक करोड़ किसान परिवारों को भी नहीं मिल पाता। इसलिए इस योजना को व्यापक स्वरूप देना आवश्यक है, जिससे सभी किसानों को इसका लाभ मिल सके।
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किसानों को उनके उपज का अधिकतम मूल्य देने के लिए समर्थन मूल्य पर गेंहू की खरीद सहकारी समितियों के माध्यम से दी जायेगी। इसके लिए किसानों का पंजीयन 25 फरवरी तक किया जा रहा है। किसान अपने नजदीकी केन्द्र में जाकर आ