पति-पत्नी खुद तय करें कितने बच्चे हों, जानें केंद्र के इस जवाब के मायने !
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देश में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कानून बनाए जाने की मांग समय-समय पर उठती रही है। इस पर, केंद्र सरकार ने शनिवार को उच्चतम न्यायालय में कहा है कि भारत में किसको कितने बच्चे पैदा करने हैं, यह खुद पति-पत्नी तय करें, इसमें सरकार को जबदरस्ती नहीं करनी चाहिए कि वो निश्चित संख्या में ही बच्चे पैदा करें।
केंद्र ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि भारत देश के लोगों पर जबरन परिवार नियोजन थोपने के साफ तौर पर विरोध में है और निश्चित संख्या में बच्चों को जन्म देने की किसी भी तरह की बाध्यता हानिकारक होगी एवं जनसांख्यिकीय विकार पैदा करेगी।
बच्चे पैदा करने का फैसला मां-बाप का
स्वास्थ्य मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में पेश हलफनामे में कहा कि देश में परिवार कल्याण कार्यक्रम स्वैच्छिक है, जिसमें अपने परिवार के आकार का फैसला दंपति कर सकते हैं और अपनी इच्छानुसार परिवार नियोजन के तरीके अपना सकते हैं।
इससे साफ है कि बच्चे पैदा करने को लेकर किसी तरह की निश्चित संख्या की अनिवार्यता नहीं है। केंद्र सरकार का ये भी कहना था कि निश्चित संख्या में बच्चों को जन्म देने की किसी भी तरह की बाध्यता हानिकारक होगी और जनसांख्यिकीय विकार पैदा करेगी। भाजपा नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका पर प्रतिक्रिया में यह बात कही गई है।
याचिका में ये मांग की गई
याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें अदालत ने देश की बढ़ती आबादी पर नियंत्रण के लिए दो बच्चों के नियम समेत कुछ कदमों को उठाने की मांग करने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी।
मंत्रालय ने कहा कि लोक स्वास्थ्य राज्य के अधिकार का विषय है और लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से बचाने के लिए राज्य सरकारों को स्वास्थ्य क्षेत्र में उचित एवं टिकाऊ तरीके से सुधार करने चाहिए। इसमें कहा गया कि स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार का काम राज्य सरकारें प्रभावी निगरानी तथा योजनाओं एवं दिशा-निर्देशों के क्रियान्वयन की प्रक्रिया के नियमन एवं नियंत्रण की खातिर विशेष हस्तक्षेप के साथ प्रभावी ढंग से कर सकती हैं।
अदालत ने कहा- कानून बनाना संसद का काम
उच्च न्यायालय ने तीन सितंबर को याचिका खारिज करते हुए कहा था कि कानून बनाना संसद और राज्य विधायिकाओं का काम है, अदालत का नहीं। उक्त याचिका में कहा गया था कि भारत की आबादी चीन से भी अधिक हो गई है तथा 20 फीसदी भारतीयों के पास आधार नहीं है।
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