एक वैश्विक महामारी (कोविड-19) बनी भारत के पतन का कारण , सब बंद ,गाडी का पहिया थम गया । ट्रेन की पटरियाॅ वीरान हो गई सभी दुकानदार गुमसुम हो गये भारत की आर्थिक स्थिति डावा-डोल हो रही है । गरीब पैदल चल रहा है । क्योकि बस-टैम्पो के न चलने से सडके वीरान है । सिर्फ सडक पर कौन दिखाई दे रहा है ! वो है गरीब इंसान है । लाखो -हजारो किलोमीटर की दूरिया और पूरी गृहस्थी सर पर एक पोटली मे अपने घर पहुचने को आतुर चलते हुये और उसके घर के लोग वाट जोहते है कि मेरे घर से रोजी रोटी के तलास मे परदेश गया हुआ व्यक्ति कब लौटकर आयेगा ,कैसे आयेगा ,सांसे जुडी हुई या फिर एक संन्नाटे के साथ आंखो मे आसू देकर ! क्या यही दिन जो एहसास करा रही है कि मेरा भारत विकास कि पहिया चलाते चलाते कब वेपटरी होकर सडक से उतर गया ।
श्रृष्टि के सुंदरता की रचना मे कही न कही श्रमिको का एक अंनत भाग का योगदान होता है वही श्रमिक वाराह जैसे अपने आश्रय मे पहुचने के लिये धरा को पगो से नापते दिख रहे है ।
अब देखिए साहव ! कहने को तो गरीब को रोटी कपडा और माकान चाहिए । उनकी गृहस्थी के एक पोटली का बजन इतना ज्यादा हो गया कि ना तो उसकी सिसकती आवाज को कोई सुनने वाला और न ही पाव के छालो के दर्द को देखने वाला क्योकि वो किसी व्ही व्ही व्ही आईपी की सिफारिस से नही वल्कि अपने पेट पालने के लिय दो वक्त कि रोटी जुटाने मे अपनो से दूर रह कर अपने जीवन की महत्वाकांक्षाओ को दवाकर दिन रात मेहनत कर के दो वक्त की रोटी जुटाने मे लगे रहते है ।
इनकी उम्मीदे सडको मे ही दम तोडती नजर आई तब , जब किसी का बेटा माॅ-बाप की गोद मे ही चिरनिद्रा मे सो गया तो किसी की माॅ चलते राहो मे ही दम तोड दी ,तो किसी का पति आधे मे जीवन मे पत्नी का साथ छोड दिया । क्या ए अधूरी जिंदगी लेकर जब वची जिंदगी लेकर घर पहुचते है तो क्या मिलता है आंसू का सैलाव और अपनो की यादे ।
वाह रे जिंदगी ! दो वक्त की रोटी और दर्द इतना गहरा ,कभी न भूलने वाला !
[ ए विचार लेखक के निजी विचार है ,आलेख में किसी को आहत या आरोप लगाना नहीं है ]
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