अश्वनी तिवारी गौतम बुद्ध एक बार अव्वाली गांव गए। गांव में उनका उपदेश सुनने के लिए हजारों लोग उपस्थित हुए। बुद्ध की सभा में गांव का एक दरिद्र किंन्तु कर्मठ कृषक भी उपस्थित हुआ। कृषक ने उनको प्रणाम किया बुद्ध का उपदेश सुनने की उसकी बड़ी इच्छा थी, किंतु दुर्भाग्यवश उसका एक बैल खो गया। कृषक इस चिंता में था कि बैल गुम हो गया, साथ ही धर्मसंकट भी था कि गुम हुआ बैल ढूंढे या बुद्ध का धर्मोपदेश सुनने जाए। अंतत: आखिर उसने बैल को ढूंढने का निश्चय किया। कृषक के अथक प्रयास से उसको संध्या के समय बैल मिल गया। थका हुआ, भूखा-प्यासा कृषक उसी स्थान से निकला और उसने बुद्धदेव को प्रणाम किया। इसके बाद उसने बुद्धदेव के प्रवचन सुनने का निश्चय किया। भगवान बुद्ध ने पहले उसके थके-मांदे चेहरे को निखारा और फिर भिक्षुओं से कहा कि इसको भोजन करवाओ। कृषक के तृप्त होने पर बुद्धदेव ने उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित करना शुरू किया। कृषक ने एकाग्र होकर उपदेश सुना और वह घर चला गया। उसके चले जाने के बाद बुद्धदेव ने अपने शिष्यों से इस बात की कानाफूसी सुनी कि उस कृषक के लिए बुद्धदेव ने विलंब किया। बुद्धदेव तब शांत स्वर में बोले कि भिक्षुकगण, उस कृषक को मेरा उपदेश सुनने की बड़ी इच्छा थी, लेकिन इससे उसके कार्यों में बाधा आ सकती थी। अत: वह सुबह मजबूर होकर यहां से लौट गया। वह अपने लोककर्म के पालन के लिए सारा दिन भटका और तृप्त होते ही मेरे पास चला आया। यदि मैं उस भूखे को उपदेश देने लगता तो वह उसको ग्रहण नहीं कर सकता था। याद रखो क्षुधा के समान कोई भी सांसरिक व्याधि नहीं है। अन्य रोग तो एक बार की चिकित्सा से शांत हो जाते हैं, किंतु पेट की आग बुझाने के लिए चिकित्सा रोजाना करनी पड़ती है।
लाइव हिंदुस्तान समाचार शाह शूजा की पुत्री अत्यंत धर्मपरायण वैराग्यपूर्ण भावनाओं से ओतप्रोत थी। उसके विरक्त भावों के देखकर शाह शूजा ने उसका विवाह एक ज्ञानी फकीर से कर दिया, ताकि उसकी धर्मपरायण भावनाओं को कभी ठेस नहीं पहुंचे और वह अपनी इ