रूस और यूक्रेन के बीच जंग के एक साल से भी अधिक समय हो चुका है और दोनों देशों में संताप बढ़ता जा रहा है। रूस चाहता है कि यूक्रेन को पूरी तरह तबाह कर दें और इसे साथ ही मजबूर कर दें घुटने टेकने के लिए, हालांकि यूक्रेन रूस के सामरिक खतरों के सामने खड़ा होने के बिना राजी नहीं है।
जंग शुरू होते ही रूस ने यूक्रेन के बंदरगाहों को निशाना बनाया और इसका पराभव उत्पन्न हुआ। इसके बाद यूक्रेन ने क्रीमिया क्षेत्र और काला सागर में मौजूद रूसी नौसेना के विकिरणीय केंद्रों पर हमला किया। काला सागर पर बसे नोवोरोस्सिएस्क का बंदरगाह रूस के लिए महत्वपूर्ण है, इसलिए रूस के लिए यह हमला एक बड़ी चुनौती साबित हुआ।
इस जंग के दौरान, तुर्की ने काला सागर मार्ग के माध्यम से सुरक्षित अनाज आयात और निर्यात के लिए रूस और यूक्रेन के बीच समझौता किया है। यह समझौता दोनों देशों को सुविधा प्रदान करेगा और उन्हें अपनी आर्थिक और खाद्य सुरक्षा में सुदृढ़ता देगा।
काला वार के चलते रूस ने अपने रक्षा बजट को दोगुना कर दिया है। यूक्रेन में बढ़ती आक्रामकता का असर रूसी अर्थव्यवस्था पर दिख रहा है। यहां तक कि रूसी रूबल की कीमत में दीर्घकालिक गिरावट दर्ज हुई है, जो लोगों की आर्थिक स्थिति को बिगाड़ रही है।
सब इसके बावजूद, यूक्रेन हमेशा आराम नहीं कर रहा है। रूस के बदलते रवैये ने यूक्रेन में संकट का पहाड़ बढ़ा दिया है और दोनों देशों के बीच विवाद की स्थिति अभी भी गंभीर है।
इसलिए, जबकि दोस्ताना संबंध बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जरूरत है कि रूस और यूक्रेन दोनों देशों की सुरक्षा और सौहार्द देखा जाए, ताकि स्थायी शांति और खुदरा मामलों की एक संहिता तैयार हो सके।
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