सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार की क्रियाओं पर सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने कहा कि जजों की नियुक्ति में पसंद-नापसंद की नीति ठीक नहीं है। इससे पहले भी सरकार ने कुछ जजों के तबादले की फाइलें स्थानांतरित करने की प्रक्रिया में देरी की थी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया शामिल हैं, ने बताया कि सिलेक्शन के बाद चुनाव करना समस्या पैदा करता है। कोर्ट ने सरकार को इस मामले में एक और मौका देने का फैसला किया है। 5 दिसंबर को अगली सुनवाई की तारीख तय की गई है।
स्वतंत्रता की इस विचारधारा का उद्घाटन करते हुए भारतीय न्यायिक प्रणाली ने हमेशा से अपने न्यायाधीशों की नियुक्ति पर उलझनेवादी विवादों का सामना किया है। यही रीति-रिवाज इस न्याय प्रणाली के मोल के रूप में बनी हुई है। हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने केंद्र सरकार के जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर सवाल उठाए हैं। जस्टिस संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया की बेंच ने सरकार के न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया पर संकेत दिया। इसके अलावा, कोर्ट ने सरकार के द्वारा कुछ जजों के तबादले की फाइलें संदेहास्पद ढंग से रखी जाने को भी उठाया। सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि सिलेक्शन के बाद चुनाव करना समस्या पैदा करता है और सरकार को इस मामले में थोड़ा और वक्त चाहिए।
सरकार को सावधान कोशिश की जाती है, ताकि जजों को नियुक्ति से लेकर तबादले तक की प्रक्रिया धीमी चलाई जा सके और इसका कोई विवाद न उठा सके। एक पक्ष का मानना है कि जब जजों की नियुक्ति को प्रक्रियानुसार किया जाएगा, तब यह समस्या ही उत्पन्न होगी। इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस मामले में थोड़ा और वक्त चाहिए बताया है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 5 दिसंबर को निर्धारित की है। इसके पश्चात सिद्धान्त निकलेगा कि कैसे इस कठिनाई का समाधान किया जाएगा और जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को कैसे सुधारा जाएगा। हालांकि, इससे पहले भी ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले बाद मोदी सरकार ने क्या कार्रवाई की है इसका असर फिलहाल अभी तक देखा नहीं जा सका है।
इस मामले में जहां सुप्रीम कोर्ट ने अपने संकेतों से सरकार को और वक्त दिया है, वहीं कुछ लोग इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट की नियापकता का परीक्षण भी मान रहे हैं। उनके मानने के अनुसार, यह निर्णय उन लोगों की आशंका को प्रकट करता है जो न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया से संबंधित हैं। यह भी एक मान्य बात है कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मामले में अपनी तरफ से एक नयी सुनवाई की तारीख तय की है। यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण है और आगे न्यायिक प्रक्रिया को और उचित बनाने के लिए सरकार के आगे बड़े संकेत भी है।
आशा की जा रही है कि सरकार इस मामले में संवेदनशीलता और सतर्कता के साथ काम करे और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करें। जहां अपने जजों की नियुक्ति पर सवाल उठाने से पहले सरकार को थोड़ा और समय चाहिए है, वहीं कोर्ट को भी सरकारी समर्थन की उम्मीद है। अगली सुनवाई में हीं स्पष्ट होगा कि कैसे और कितनी ख़मोशी इस मुद्दे को सुलझाने में और कठिनाइयों को हल करने में लगेगी।
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